चमन प्रकाश केयर
रायपुर/मंदिर हसौद। एक तरफ शासन-प्रशासन जलाशयों की संरक्षण और संवर्धन के लिए नित नए योजना बनाकर जल संरक्षण का कार्य करती है, तो वही दूसरी तरफ पैसे और पहुँच के चलते उच्च न्यायालय, एनजीटी, पर्यावरण संरक्षण मंडल के आदेशों का कैसे धज्जियाँ उड़ाते नज़र आ रहे है उसका आज हम ताज़ा उदहारण दिखाने जा रहे है, जहाँ पर मंदिर हसौद के ग्राम पंचायत जरौद – उमरिया के मायरा रिसार्ट संचालक द्वारा सारे नियमों कायदे कानून को ताक में रखकर किस तरह से जहरीले केमिकल युक्त बदबूदार गंदे पानी को पंचायत के अधीन संचालित हो रहे प्राचीन बांध एवं तालाब में धडल्ले से छोड़ने का कार्य कर रहे है | जहरीले केमिकल युक्त पानी की जद में पूरा गाँव के ग्रामीण आ गए है | लिहाजा दैनिक उपयोग के लिए ग्रामीण तालाब ने निस्तारी करते है जिसकी वजह से कई लोगों को त्वचा से सम्बन्धित बीमारी होने का खतरा बना हुआ है | तो वहीं कई जलीय जीव जंतु बीमारी से ग्रसित हो गये है |
रिसार्ट संचालक ने करीब एक किलोमीटर जमीन पर कब्ज़ा कर बना लिए है सडक
इसके अलावा मायरा रिसार्ट संचालक ने कुछ महीने पूर्व शासन के बिना अनुमति के एन. एच. 6 से लेकर उमरिया ग्राम पंचायत को जोड़ती पी.डब्ल्यू.डी. विभाग की एक सड़क है | जिसके किनारे इस सड़क दस फीट की चौड़ाई और करीब एक किलोमीटर तक लम्बा जमीन पर कब्ज़ा कर अवैध तरीके से नया डामर के सड़क का निर्माण कर रहे है, जिस पर मुरुम डाल रखे हुए है | इस पुरे सडक को लक्जरी रिसॉर्ट के मालिक ने अपने कब्जे में ले लिया है | इसके अलावा बिजली के खंबों, केबलिंग, डिवाइडर निर्माण सहित कई अन्य कार्यों को अंजाम दे रहा है । वहीं मिली जानकारी के मुताबिक रिसार्ट संचालक स्थानीय नेताओं एवं अधिकारीयों से मिलीभगत कर इस तरह के घटना को अंजाम दे रहे है |
मायरा रिसार्ट के मालिक को न कानून का नहीं है भय
मायरा रिसार्ट के मालिक को न कानून का डर न गांव का, पर्यावरण और एनजीटी के नियमों को ताक पर रखकर निरंकुश होकर खुलेआम नियमों की धज्जियां उड़ाई जा रहे हैं। वहीं सरपंच इस मामले अभी तक हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं उसे सबूत की दरकार फिर वे एक्शन लेने की बात कह रहे हैं। रिसार्ट के गंदा पानी पिछले एक महीने से तालाब में भरा जा रहा है, लेकिन सरपंच को देखने तक की फुर्सत नहीं।
ताजा मामला मंदिर हसौद से सटे ग्राम जरौदा का है। जहां ग्रामीणों का एक मात्र निस्तारीकरण तालाब जिसमें हजारों एकड़ जमीन सिंचित होता है। यह तालाब प्राचीन तालाब है, लगभग 30-40 एकड़ में फैला है। तालाब की दुरुदशा बद से बदतर कर दिया है। कोई इसे व्यावसायीकरण में तब्दील कर तालाब की जमीन को अधिकरण कर लिया है तो कोई रिसार्ट का गंदा पानी को फेंकना का कूड़ा कचरा में तब्दील कर दिया है। ग्रामीण इसकी शिकायत लगातार कर रहे हैं लेकिन रिसार्ट के एमडी के कान में जूं तक नहीं रेंग रहा है।
उच्च न्यायालय पर्यावरण और एनजीटी के नियमों को ठेंगा
मायरा रिसार्ट के संचालक ने पर्यावरण के सारे नियमों को धता बताकर मनमानी नज़र आ रहे है कि पीडि़त ग्रामीण रिसार्ट मालिक के सामने बौने साबित हो रहे हैं। गांव वाले खुलकर रिसार्ट प्रबन्धन के खिलाफ विरोध कर रहे हैं, लेकिन सरपंच प्रतिनिधि सालिकराम डहरिया अनसुना कर दिया है। इतने बड़े पैमाने में गंदा पानी जमीन पर वहां भरा मिला, लेकिन सरपंच को दिखाई नहीं दे रहा यह हैरत की बात है। आखिर सरपंच कब नींद से जागेंगे जब कोई बड़ा हादसा हो जाएगा। वे गांव के प्रतिनिधि हैं, रिसार्ट के इस हरकत पर उन्हें तत्काल संज्ञान लेना चाहिए, लेकिन मीडिया वाले जब उनके इस मामले में संज्ञान में लाया तो वे सफाई देने लगे की मेरे पास कोई सबूत नहीं हैं कहकर अपने जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया।
वही इन सभी मुद्दों को लेकर मायरा रिसार्ट के प्रबंध संचालक आशीष अग्रवाल से मिलने उनके दफ्तर गए उनके कर्मचारी प्रेमप्रकाश मिश्रा ने पूरी जानकारी लेने के बाद साहब को अंदर जाकर बता के आता हूँ रिसार्ट के भीतर दफ्तर में गए कुछ देर बाद लौटने पर कहा कि अग्रवाल साहब नहीं है कहकर गोलमोल जवाब देते रहे | वही इसके पूर्व में भी रिसार्ट के प्रबंध संचालक आशीष अग्रवाल के मोबाईल नंबर पर कई बार काल और मैसेज किया गया लेकिन उनका कोई जवाब नहीं आया |