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सुलगते मणिपुर में 60 बेकसूरों ने गंवाई जान, 231 घायल और 1700 घर जलकर हुए राख

हिंसा में झुलसते मणिपुर से आई तस्वीरों ने पूरे देश को विचलित किया है. इस हिंसा को लेकर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में भी सुनवाई हुई. अदालत ने सोमवार को ही राज्य सरकार को आदेश दिया कि ताजा स्थिति से अवगत कराएं. ऐसे में मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर हिंसा में हुए नुकसान का पूरा आंकड़ा बताया.

सीएम के मुताबिक 3 मई की घटना में लगभग 60 निर्दोष लोगों की जान चली गई, 231 लोगों को चोटें आईं और लगभग 1700 घर जल गए. मुख्यमंत्री एन वीरेन सिंह ने कहा, ‘मैं लोगों से राज्य में शांति बनाए रखने की अपील करता हूं. फंसे हुए लोगों को उनके संबंधित स्थानों तक पहुंचाने का काम शुरू हो गया है.’

3 मई को सुलगा मणिपुर

गौरतलब है कि 3 मई को इम्फाल घाटी स्थित मैतेई और पहाड़ी स्थित कुकीज के बीच झड़पें हुईं, जिसमें सशस्त्र भीड़ ने गांवों पर हमला किया, घरों में आग लगा दी और दुकानों में तोड़फोड़ की. इस हिंसा के बाद एक्शन लेते हुए सरकार को मोबाइल इंटरनेट सेवाओं पर प्रतिबंध लगाने और हिंसा प्रभावित क्षेत्रों में धारा 144 लगाना पड़ा. राज्य के कुछ हिस्सों में अब भी कर्फ्यू लगा हुआ है. उस वक्त तो राज्य में हिंसा इतनी भड़क गई थी कि दंगाइयों को देखते ही गोली मारने के आदेश दिए गए.

राज्य के लोगों पर पड़ रही दोहरी मार

हिंसाग्रस्त राज्य में यहां के लोगों पर दोहरी मार पड़ रही है. एक तरफ आगजनी और पथराव के बीच लोग डर के साए में रहने के लिए मजबूर हैं. उन्हें कई गुना ज्यादा कीमत पर पेट्रोल, राशन और दवाइयां खरीदनी पड़ रही हैं. तो वहीं दूसरी तरफ मणिपुर से बाहर निकलने के रास्ते भी मुश्किल होते दिखाई पड़ रहे हैं. ऐसे में कई राज्य सरकारें अपने यहां के लोगों को सुरक्षित निकालने के लिए प्रबंध कर रही हैं.

चोरी से बचाने के लिए उठाया कदम

मणिपुर में तनावपूर्ण हालात के मद्देनजर सभी जिलों के एसपी को प्रदेश सरकार की तरफ से आदेश जारी किया गया है कि जिन घरों को लोग खाली करके गए हैं, उन्हें सुरक्षित रखा जाए. राज्य सरकार ने यह कदम लूटपाट की घटना रोकने और प्रॉपर्टी को सुरक्षित रखने के लिए उठाया है. राज्य में कई लोगों ने हिंसा की वजह से अपने घरों को छोड़ा है.

दिल्ली तक पहुंची हिंसा की आग

मणिपुर की हिंसा की आग कितनी गंभीर है इसका अंदाजा सिर्फ इसी बात से लगाया जा सकता है कि यह मामला अब दिल्ली तक पहुंच गया है. बीते दिन यानी रविवार को दिल्ली यूनिवर्सिटी के नॉर्थ कैंपस के आसपास रहने वाले मणिपुरी छात्रों के एक ग्रुप ने आरोप लगाया था कि उनके साथ गुरुवार की रात कुछ छात्रों ने मारपीट की थी. पीड़ित छात्रों ने आरोप लगाया कि घटना गुरुवार की देर रात नॉर्थ कैंपस में तब हुई जब वह एक प्रार्थना सभा करके वापस अपने घर लौट रहे थे. तभी छात्रों के दूसरे ग्रुप में इन्हें घेर लिया जिसमें कुछ छात्राएं भी शामिल थीं और उनके साथ बदसलूकी की और मारपीट की घटना भी हुई. पीड़ित छात्रों के ग्रुप ने मौरिस नगर थाने के पास प्रदर्शन भी किया और पुलिस से FIR दर्ज करने की मांग की थी.

कैसे शुरू हुई हिंसा?

तीन मई को ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन मणिपुर (ATSUM) ने ‘आदिवासी एकता मार्च’ निकाला. ये रैली चुरचांदपुर के तोरबंग इलाके में निकाली गई. इसी रैली के दौरान आदिवासियों और गैर-आदिवासियों के बीच हिंसक झड़प हो गई. भीड़ को तितर-बितर करने के लिए पुलिस ने आंसू गैस के गोले दागे. तीन मई की शाम तक हालात इतने बिगड़ गए कि राज्य सरकार ने केंद्र से मदद मांगी. बाद में सेना और पैरामिलिट्री फोर्स की कंपनियों को वहां तैनात किया गया.

रैली क्यों निकाली गई थी?

ये रैली मैतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने की मांग के खिलाफ निकाली गई थी. मैतेई समुदाय लंबे समय से अनुसूचित जनजाति यानी एसटी का दर्जा देने की मांग हो रही है. पिछले महीने मणिपुर हाईकोर्ट के एक्टिंग चीफ जस्टिस एमवी मुरलीधरन ने एक आदेश दिया था. इसमें राज्य सरकार को मैतेई समुदाय को जनजाति का दर्जा दिए जाने की मांग पर विचार करने को कहा था. इसके लिए हाईकोर्ट ने सरकार को चार हफ्ते का समय दिया है. मणिपुर हाईकोर्ट के इस आदेश के बाद नगा और कुकी जनजाति समुदाय भड़क गए. उन्होंने 3 मई को आदिवासी एकता मार्च निकाला.

Manish Tiwari

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